Thursday 2 March 2023

उस फागुन की चैट- डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के दोहे

दृग सिग्नेचर कर रहे, एक हुए सब भाव।
फागुन ने जादू किया, पास हुआ प्रस्ताव।।

फागुन मन बादल हुआ, इच्छाएँ आकाश।
इन्द्रधनुष उर में उगे, टूट गये सब पाश।।

फागुन ने आँचल छुआ, संग लिये संकल्प।
नहीं प्रेम का लोक में, कोई और विकल्प।।

नयनकोर पर बन रहे, सुस्मृतियों के फ़्लैट।
इस फागुन में पढ़ रहा, उस फागुन की चैट।।

फागुन का त्यौहार था, मिलने की मनुहार।
पढ़ा पत्र पर विवश था, टपके अश्रु हज़ार।।

आँख मिलीं तो मिल गया, सहसा मुझे जवाब।
गुझिया उसके हाथ थी, मेरे हाथ गुलाब।।

मन गुब्बारे-सा हुआ, पढ़ा शब्द 'प्राणेश'।
मैसेंजर में दिख गया, गुझिया का संदेश।।

मिलन हुआ, बाँछें खिलीं, विरह गया वनवास।
फागुन आया लिख गया, रोम-रोम उल्लास।।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)
veershailesh@gmail.com 

3 comments:

  1. उल्लास से भरपूर यह रचना अत्यंत मोहक है सर 😊🌹🙏

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  2. वाह अत्यंत सुंदर सृजन

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  3. वाह्ह्हह्ह वाह्ह्हह्ह बेहद शानदार दोहे वीर जी 🙌🙌👏👏👌

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