Tuesday 14 March 2023

अनुपम कृति : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

जिस पल 
मैं/तुममें
तुम/मुझमें
खो जाती हो,
उस पल 
मैं- पुरुष 
तुम- प्रकृति 
हो जाती हो, 
मैं 
सामान्य से परे 
और तुम!
विधाता की 
अनुपम कृति 
हो जाती हो!

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005
ईमेल- veershailesh@gmail.com

[पेन्टिंग : रंजना कश्यप]

2 comments:

  1. बहुत सुंदर पंक्तियां

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  2. बहुत खूबसूरत पेंटिंग❤️, बहुत खूबसूरत शब्द 👌

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