नहीं रही क्यों
कहाँ गयी अब
गुलमोहर की छाँव,
इसी प्रश्न पर
मौन साध कर
बैठा सारा गाँव।
गांधारी हो गयी अस्मिता
धृतराष्ट्र न्याय के पैमाने
नतमस्तक हो कर सत्य-शील
बैठे दुर्योधन पैताने,
अंगराज-सा
भाग्य विवश है
कटे हुए हैं पाँव।
इधर चेतना के सर पर
कुछ काले बादल मँडराये
उधर बवंडर हुआ माफ़िया
कट्टा-बन्दूकें लहराये,
भयाक्रांत
रोटी के सपने
चलें कौन-सा दाँव।
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.)
पिन कोड- 212601
वार्तासूत्र- 9839942005
ईमेल- veershailesh@gmail.com
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