अनन्तता की परिधि में
---------------------
आत्मानुभूति की कोई भाषा नहीं होती
देह के बन्धन से मीलों दूर
हर संशय से मुक्त है यह निराकार नेह
अलौकिक है तुम्हारा सानिध्य
मैं विचरण कर रहा हूँ अनन्तता की परिधि में
धरती गा रही है सुरीला गीत
मुट्ठी में है आकाश!
© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
25/03/2019
बहुत सुंदर
ReplyDeleteडॉ. कविता जी,
Deleteहार्दिक आभार आपका!