Sunday, 12 October 2025

सुबह की तस्वीर/डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

मेरे ह्वाट्सएप इनबाॅक्स पर 
सुबह की एक 
प्यारी-सी तस्वीर
चली आयी 
खिलखिलाते हुए,

उसका जादुई चेहरा 
और उसकी आँखों में बसा मैं
प्रभात को दे रहे थे
एक नया आकार,
उसने फिर लिखे
कुछ गुलाबी शब्द
और बढ़ गयीं
दिल की धड़कनें,
वह निहार रही थी
बस मुझे और मुझे,

मैं जानता हूँ कि उसका यों निहारना
मही में भर देगा
ग़ज़ब का आत्मविश्वास
आकाश को कर देगा सतरंगी...
लो! शुरू हो गयी
बादलों की 
आवाजाही,

यह सुबह की तस्वीर भी न!

- डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)
पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005
ईमेल- editorsgveer@gmail.com

Tuesday, 7 October 2025

विद्युत गति से बिम्ब रचते दोहों का संग्रह है "कब टूटेंगी चुप्पियाँ"/समीक्षक- इन्दिरा किसलय


लघु कलेवर में महत्तम भावबोध को ध्वनित करती हुई दोहा विधा हिन्दी साहित्येतिहास के विशाल कालखण्ड पर छायी रही और आज भी ऐश्वर्य से प्रदीप्त है। इसकी उपस्थिति के आदि क्षण को कालिदास कृत विक्रमोर्वशीयम् में चिह्नित किया गया। कथितव्य है कि सिद्ध कवि सरहपा ने नौवीं शताब्दी ई. में प्रमुखता से प्रयुक्त किया। बौद्ध, जैन और शैवों ने भी दोहे रचे। सरलतम मात्रात्मक द्विपदी छन्द दोहा अपने विषय वैविध्य, विस्तृत भावभूमि, लयात्मकता, और कथ्य पर अचूक शर-संधान के कारण बेहद लोकप्रिय रहा। कबीर के परवर्ती काल में दोहे में सामन्ती तत्त्वों ने प्रवेश किया। मध्यकाल में इसे नीति और उपदेश के अनुरूप पाया गया। सूफ़ी-फ़क़ीर भी इसके मोह से बच न सके। सूर, तुलसी, रहीम, रसखान, जायसी, मीरा, बिहारी ने भी इसे पूर्ण अर्थवत्ता के साथ ग्रहण किया।

इसी क्रम में समकालीन दोहों के चरित्र की चर्चा करें तो समीक्ष्य कृति "कब टूटेंगी चुप्पियाँ" के प्रणेता डाॅ. शैलेष गुप्त 'वीर' ने युगधर्म का आह्वान स्वीकारा है। वे समय की प्रतिगामिता पर बारीक नज़र रखते हैं। मजाल है कोई विसंगति उनकी पैनी दृष्टि से छूट जाये। उनके दोहों में तीन पार्श्व तीव्रता से शब्दायित हुए हैं। पहला है अराजक व्यवस्था, दूसरा है किसान और सर्वहारा, तीसरा तकनीकी क्रान्ति से समाज में होनेवाले अयाचित बदलाव। मूल्यहीन राजनीति को लेकर उन्होंने कतिपय दोहों को आवाज़ दी। नारी अस्मिता, वृद्धाश्रम, गुमराह युवा पीढ़ी, मसख़रे मंच, पर्यावरण ध्वंस, रिश्तों का विघटन भी उनकी परिधि में समाया है।

चित्रात्मक बिम्ब विधान वीर जी की विशेषता है। शब्दों की मितव्ययिता, मार्मिकता, अलंकारिकता और सबसे महत्वपूर्ण गुण है स्पष्टता।उनकी हंस मेधा प्रतीक प्रतिमानों के चयन में पूर्णतः सक्षम है। दोहे पढ़ते ही विद्युत गति से बिम्ब उभरते हैं।साहित्यिक अपसंस्कृति को वे कुछ इस तरह व्यक्त करते हैं-
"पढ़कर उसने चुटकुले, दे दी सबको मात।
फूट-फूट रोती रही, कविता सारी रात।।"

कृषि प्रधान राष्ट्र में कृषक आत्महत्या ऐसी शोकांतिका है, जो अनुदिन बढ़ती ही जा रही है। यह हृदयद्रावक दृश्य अगतिकता का चरम उपस्थित करता है-
"फंदे पर हलधर मिला, उड़े न्याय के होश।
बादल पाला बिजलियाँ, हुए सभी ख़ामोश।।"

"न हि मानुषात् श्रेष्ठतरं हि किंचित्", जो मानवता के हक़ में नहीं; वह वाद, विचार, विधि, या दृश्य उन्हें मंज़ूर नहीं।सूक्ष्मतम विद्रूप भी उन्हें आवेशित करता है। एक गहन भावदशा द्रष्टव्य है-
"सत्ता गांधारी हुई, अंधा सारा तंत्र।
दोनों मिलकर पढ़ रहे, बेकारी के मंत्र।।"

सहज सम्प्रेषण उनके दोहों का अलंकार है। उनकी तीव्रता का अनुभव करवाने के लिए उन्होंने, मीन, चील, बकरी, शेर, भेड़, भेड़िए, गैंडे, हिरनी, लोमड़, हंस, ऊँट, चिम्पैंजी, सीहार्स, गिरगिट, बाज, चूहे, बिल्ली जैसे कितने ही प्राणियों का प्रतीक बतौर इस्तेमाल किया है। शेर मदान्ध सत्ता का प्रतीक है और बकरी यानी आम आदमी।

चुनाव तंत्र में तब्दील होते लोक तंत्र और चाटुकार मीडिया की कुछ ऐसी छवि अंकित की है उन्होंने-
"लोकतंत्र को भेड़िये, देते गहरी चोट।
डरी हुई हैं बकरियाँ, डाल रही हैं वोट।।"

"डरे हुए हैं लोग क्यों, क्यों छाया है मौन।
डरा हुआ है मीडिया, प्रश्न करेगा कौन।।"

जाति धर्म के नाम पर विभाजनकारी ताक़तें उदग्र हैं।वीडियो गेम में मसरूफ़ बचपन, पाखण्डी बाबा, खाप पंचायतें, एसिड अटैक, महँगाई, बेरोज़गारी जैसे मुद्दे भाँय-भाँय कर रहे हैं और अन्तरिक्ष में छलाँग लगाती वैज्ञानिक उपलब्धियों का ढोल पीटा जा रहा है। अवसरवाद ने चुप्पियों को शह दी है। कृति का शीर्षक दोहा इसकी बानगी पेश करता है।
"जिप्सी कर्फ़्यू सायरन, आज़ादी का जश्न।
कब टूटेंगी चुप्पियाँ, शहर पूछता प्रश्न।।"

भारत युवाओं का देश है, पर क्या उनकी प्रचण्ड ऊर्जा का रचनात्मक उपयोग हो रहा है?
ऐसे कितने ही प्रश्न अनुत्तरित रहने को अभिशप्त हैं-
"दारू सट्टा छोकरी, गुटका और सिग्रेट।
मोबाइल पर व्यस्त है, यंग इंडिया ग्रेट।।"

एक अपेक्षित एवं अनुकरणीय विशेषता उनके सृजन में पायी जाती है वह है "तकनीकी नवाचार" को स्थान देना। इनमें समकालीनता की प्रतिध्वनि सुनी जा सकती है-
"नज़र पड़ी इनबाॅक्स पर, ख़ुशी मिली बेमाप।
एक इमोजी हार्ट का, आया है चुपचाप।।"

पंगु प्रशासन हो गया, मानवता भी फ्यूज़।
चैनलवालों को मिली, फिर से ब्रेकिंग न्यूज़।।"

"फागुन में आये नहीं, नहीं करूँगी बात।
अवनी चैटिंग कर रही, अम्बर से दिन-रात।।"

बेशक उनके दोहों का आचरण शास्त्रीय है पर तेवर कबीराना।सोने में सुहागा ही कहेंगे इसे।प्रतीक, प्रतिमान भाषा, उपजीव्य सब ताज़ा सदी के। चूँकि वीर जी सम्पादक, कवि, लेखक तो हैं ही; बहुभाषाविद् भी हैं। दोहों में उनका भाषायी संस्कार प्रभावित करता है। बेख़ौफ़ होना किसी भी सच्चे साहित्यकार की एकमात्र कसौटी है, जिस पर वे चौबीस कैरेट स्वर्ण जैसे सिद्ध हुए हैं।

निर्दोष मुद्रण एवं विचारों को आन्दोलित करते हुए आकर्षक मुखपृष्ठ के लिए श्वेतवर्णा प्रकाशन श्रेयार्थी है। दोहा विधा की समृद्धि में डाॅ. शैलेष गुप्त 'वीर' जी का योगदान चिरकाल तक स्मरण किया जायेगा। हाथ कंगन को आरसी क्या। "कब टूटेंगी चुप्पियाँ" पढ़िए, चुप्पी न टूटे तो कहिएगा। 
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कृति: कब टूटेंगी चुप्पियाँ (दोहा-संग्रह)
दोहाकार: डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
प्रकाशक: श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली
ISBN: 978-81-984164-8-3
मूल्य: ₹ 299
पृष्ठ: 104 (हार्ड बाउंड)
संस्करण: प्रथम (2025)
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■ समीक्षक सम्पर्क-
इन्दिरा किसलय
बालेश्वर अपार्टमेंट्स
रेणुका विहार, शताब्दी चौक
नागपुर (महाराष्ट्र)
पिन कोड- 440027
मोबाइल- 9960994911

Sunday, 14 September 2025

भालू दादा एमबीबीएस/डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' की बाल कविता


बन्दर जी ने ढाबा खोला,
बेच रहे हैं पूड़ी छोला।

बनकर टीचर बकरी रानी,
बना रही है सबको ज्ञानी।

भालू दादा एमबीबीएस,
ऊँचा है उनका स्टेटस।

ऊँट विधायक बनकर छाया,
राजनीति में नाम कमाया।

चारों ने की साथ पढ़ाई, 
अलग-अलग पहचान बनाई।

- डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)
पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005
ईमेल- editorsgveer@gmail.com

Sunday, 31 August 2025

अलग से कुछ नहीं/डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' की लघुकथा

"यदि हम मारे गये तो?"
एक संविदाकर्मी सैनिक ने अपने सीनियर से पूछा।
"भर्ती से पहले और अब तक मीडिया के माध्यम से तुम इसके लाभ नहीं जान पाये क्या?" 
सीनियर ने उत्तर दिया।
"सर! मैं आपसे जानना चाहता हूँ।"
संविदाकर्मी सैनिक ने आग्रह किया।
"मैं अलग से कुछ नहीं जानता।"
प्रत्युत्तर में सीनियर के स्वर में आक्रोश था।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
सम्पर्क: 18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.)
पिनकोड: 212601
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तलाश/डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' की लघुकथा

"बेटा! इस घने वीरान जंगल में क्यों आये हो?"
"सच्चे साधु की तलाश में हूँ बाबा।"
"उससे मिलकर क्या करोगे?"
"पूछूँगा कि दुनिया के दुख कैसे मिटेंगे? कहीं तपस्या करके या लोगों के बीच रहकर उनकी सेवा करके?
" उनके बीच रहकर बेटा। मैं यहाँ आकर पछता रहा हूँ।"
"आप साधु हैं क्या?"
"हाँ।"


© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
सम्पर्क: 18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.)
पिनकोड: 212601
मोबाइल: 9839942005
ईमेल: veershailesh@gmail.com


डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' एक कवि, साहित्यकार और सम्पादक हैं। उनकी कविताएँ एवं लघुकथाओं का तीस से अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुकी हैं। उन्होंने दो दर्जन से अधिक पुस्तकों का और कई पत्रिकाओं के विशेषाकों का संपादन किया है। वे हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखते हैं।

नवगीत कुटुंब में डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर

नवगीत विधा पर उल्लेखनीय कार्य कर रहे ह्वाट्सएप समूह "नवगीत कुटुंब" में डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के दो नवगीत प्रस्तुत किये गये। इस चर्चित समूह का संचालन एवं संयोजन नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर श्री शिवानंद सिंह 'सहयोगी' द्वारा किया जाता है। समूह में प्रस्तुत नवगीत और इन पर आयीं महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ यहाँ प्रस्तुत हैं।
(प्रस्तुति 30 अगस्त,  2025)

डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के नवगीत

1-
सोचा करते हैं बाबू जी

कम्पन करती 
देह समूची
आँखें हुईं पनीली।

पता सभी को
ऊँचा सुनते 
फिर भी देते ताना
आँखों ने भी
पहले जैसे
छोड़ा साथ निभाना
गुजर गयी हैं
अम्मा जब से
जीवन की 
पगडंडी तब से
हुई और रपटीली।

धुँधला चश्मा 
टीवी बिगड़ी
टूट गया मोबाइल
बेटे-बहुएँ
पूछ रहे हैं
घर-जमीन की फाइल।
सोचा करते हैं बाबू जी
बहुत हुआ अब
कब टूटेंगी
साँसें हुईं कँटीली।


2-
बाथिंग टब में मौज

बूँद-बूँद की 
कीमत जानो
भाषण में
कल बोल रहे थे
नेता रामधनी।

जिनके घर के 
कुत्ते करते
बाथिंग टब में मौज
पूल नहाने 
जाते लेकर 
नौकर-चाकर फौज
पानी 
पेरिस से मँगवाते
कोरा ज्ञान 
बाँटते हर क्षण 
सपना हनी-मनी।

दोनो मीटिंग 
पानी मिलना
जिस बस्ती में ख्वाब
आलीशान 
खड़ा है बँगला
पाट दिया तालाब
ऊपर तक है 
पहुँच मुकम्मल
न्यूज बताती
उनके दम से
फिर सरकार बनी।

जिनके कारण 
प्यासे तड़पें
आती तनिक न शर्म 
पानी-पानी 
खुद पानी है
ऐसे जिनके कर्म
शोषित पूछ रहे हैं
प्रश्न मगर
वे क्या देंगे 
उत्तर जिनकी
आँखें खून सनी।

नवगीत पर टिप्पणियाँ :-

* डॉ. भावना तिवारी-
पटल पर भाई शिवानंद 'सहयोगी' जी के माध्यम से डॉ. शैलेष जी के नवगीत पढ़ने को मिले। दोनों ही रचनाएँ अपने समय से बात करती हैं। आज जब सामाजिक-नैतिक पतन का दौर है। पारिवारिक विघटन के कगार पर खड़े रिश्तों में आत्मीयता समाप्ति पर है। ऐसे में घर के बुजुर्ग उपेक्षा का शिकार होते हैं। इसका एक दृश्य शैलेष जी के पहले नवगीत में देखने को मिलता है। वहीं दूसरी रचना में सामाजिक खाका खींचते हुए जलीय समस्या को भी उजागर किया है। नेतृत्व और सरकारी महकमे पर कटाक्ष करने में सक्षम ये रचना आज का सत्य हैं।   डॉ. शैलेष जी को बहुत बधाई।

* अशोक शर्मा 'कटेठिया'-
दोनों नवगीत समकालीन हिन्दी कविता की गंभीरता और सामाजिक सरोकार को दर्शाते हैं। पहला गीत मानवीय संवेदना की ओर उन्मुख करता है, जबकि दूसरा सामाजिक जागरूकता और विद्रोह की चेतना जगाता है। दोनों गीत अपनी-अपनी जगह पर अत्यंत प्रभावशाली और विचारोत्तेजक हैं। हार्दिक बधाई। साझा करने के लिए आदरणीय सहयोगी जी का बहुत-बहुत धन्यवाद।   सादर। 

* रघुवीर शर्मा-
आज प्रस्तुत दोनों नवगीत सामयिक और मानक नवगीत। ऐसे नवगीतों से पटल और नवगीत विधा समृद्ध होती है। आदरणीय डॉ. शैलेष गुप्त जी का हार्दिक अभिनंदन। श्रेष्ठ नवगीतों के चयन और प्रस्तुति हेतु आदरणीय सहयोगी जी का सादर आभार। 

* डॉ. मधुसूदन साहा-
तालाब को पाटकर महल बनाने वाले जब बूँद-बूँद की कीमत की बात करते हैं तो   सियासत में कथनी और करनी का चेहरा स्पष्ट हो जाता है।

* बसंत  कुमार  शर्मा- 
अद्भुत सृजन।   सादर नमन लेखनी को।

* विजय सिंह-
दोनो गीत बहुत सुंदर। रचनाकार एवं प्रस्तुतकर्ता आदरणीय श्री सहयोगी जी को बहुत-बहुत बधाई। 

परिचय: डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

प्रकाशन/सम्पादन :- 
कब टूटेंगी चुप्पियाँ, बिन्दु में सिन्धु, उन पलों में, शब्द-शब्द क्षणबोध, आर-पार, कई फूल-कई रंग, बार्ड्स ऑफ इलूमिनेश्‌न्‌स, कविता दस्तावेज है, डॉ. मिथिलेश दीक्षित का क्षणिका-साहित्य, रघुविन्द्र यादव के दोहा-सृजन के विविध आयाम, फतेहपुर जनपद के हाइकुकार, व्यंग्य-क्षणिका काव्य के पुरोधा डॉ. परमेश्वर गोयल उर्फ काका बिहारी, डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के सौ शेर, नयी सदी के दोहे, समकालीन दोहा, प्रतिरोध के दोहे, क्षणिका काव्य के हस्ताक्षर, इस दुनिया में तीसरी दुनिया, दि अण्डरलाइन क्षणिका विशेषांक, दि अण्डरलाइन पर्यावरणीय दोहा विशेषांक, अचिन्त साहित्य दीपावली क्षणिका विशेषांक, अन्वेषी के कई वार्षिकांक तथा कुछ अन्य।

अनुवाद:-
अब तक तीस से अधिक भाषाओं में आपकी कविताओं का अनुवाद हो चुका है। अनेक यूरोपीय एवं एशियाई भाषाओं यथा ग्रीक, फ्रेंच, जर्मन, चाइनीज, रसियन, स्पेनिश, अजरबैजानी, हिब्रू, पुर्तगीज, इटैलियन, अल्बानियन, तुर्किश, अरेबिक, पर्शियन, सर्बियन, क्रोशियन, नेपाली, बांग्ला, उड़िया, पंजाबी, असमिया तथा राजस्थानी आदि में कविताओं का निरन्तर अनुवाद।

प्रसारण:-
रेडियो 103 एफएम, इजराइल और द डियर जाॅन शो, वारिंगटन, इंग्लैंड में कविता का प्रसारण और स्टोरीफेस्ट 2023, मैक्सिको, ग्रीस, रसिया में लघुकथा का प्रसारण।

कुछ अन्य विशेष तथ्य:-
* विभिन्न पत्रिकाओं यथा अन्वेषी, गुफ़्तगू, अनुनाद, अरण्य वाणी, तख्तोताज, मौसम, शब्द-गंगा आदि के लिए पूर्व/वर्तमान में सम्पादन, सहसम्पादन एवं कार्यकारी सम्पादन।
* स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार की पत्रिका 'जन स्वास्थ्य धारणा' के परामर्श मंडल में शामिल।
* हिन्दी, अंग्रेज़ी तथा उर्दू की देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं, वेबपत्रिकाओं आदि में और विविध संकलनों में पद्य एवं गद्य की विभिन्न विधाओं में रचनाएँ प्रकाशित। 
* हिन्दी और अंग्रेजी दो सौ से अधिक पुस्तकों के लिये भूमिका/विमर्श/समीक्षा/आलोचना आदि प्रकाशित। 
* चर्चित लघुकथा 'छंगू भाई' पर इसी नाम से एफ. बी. इन्टरनेशनल मूवीज द्वारा लघु फ़िल्म का निर्माण।
* जून-2024 में कविता 'बीकम फायरफ्लाई' को इजराइल की दि एयरफोर्स गैलरी में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी 'बटरफ्लाइज ऑफ पीस' में विश्व के इक्कीस समकालीन प्रतिष्ठित एवं प्रतिभावान कवियों की कविताओं के साथ प्रस्तुत किया गया।
* विभिन्न सामयिक साहित्यिक मुद्दों पर देश के अनेक शीर्ष साहित्यकारों/विद्वानों के साथ परिचर्चाएँ/चौपालों का संयोजन/प्रकाशन भी आप के माध्यम से किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त आपने साहित्य एवं संस्कृति से सम्बन्धित विभिन्न नामचीन हस्तियों के साक्षात्कार भी किये हैं, जिनमें गोपालदास 'नीरज', बेकल उत्साही, शम्सुर्ररहमान फारुकी, संजय मासूम, अनवर जलालपुरी, माहेश्वर तिवारी, डॉ. मिथिलेश दीक्षित, जफर इकबाल 'जफर', रघुविन्द्र यादव तथा दिनेश शुक्ल आदि के साक्षात्कार प्रमुख हैं।
* सृजन, सम्पादन, समीक्षा, ब्लॉगिंग तथा साक्षात्कार लेखन के साथ-साथ साहित्य, संस्कृति, पत्रकारिता, इतिहास तथा पुरातत्व विषयक विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय गोष्ठियों, संगोष्ठियों, शोध-संगोष्ठियों, सम्मेलनों तथा कार्यशालाओं में सहभागिता और प्रस्तुतीकरण।
* एक अनुवादक के रूप में अंग्रेजी के कुछ कवियों की कविताओं का हिन्दी में अनुवाद।
* विभिन्न प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से हिन्दी एवं अंग्रेजी माइक्रोपोएट्री पर विशेष कार्य।
* अनेक साहित्यिक संस्थाओं/ पत्रिकाओं आदि में सम्मानित उत्तरदायी पदों पर आसीन। 

■ सम्मान/पुरस्कार:-
बेकल उत्साही सम्मान 2017, साहिर लुधियानवी सम्मान 2021, प्रदेश गौरव सम्मान 2023, टीवी प्रोग्राम यू एण्ड लिटरेचर टूडे, नाइजीरिया द्वारा लिटरेरी आइकॉन 2018, अवधी सांस्कृतिक प्रतिष्ठान, नेपाल द्वारा अवधी गौरव सम्मान 2025, डॉ. गणेश दत्त सारस्वत सम्मान 2019, आईएफसीएच, किंगडम ऑफ मोरक्को, द्वारा 'एम्बेसेडर ऑफ पीस एण्ड ह्यूमैनिटी' 2024, अकबर इलाहाबादी स्मृति सम्मान 2021, साहित्य श्री सम्मान 2022, द डेली ग्लोबल नेशन समाचार पत्र, बांग्लादेश द्वारा 'पीस एम्बेसेडर' 2024, काव्यांजलि एवार्ड 2012, सारस्वत सम्मान 2018, बाल मित्र साहित्यकार अवार्ड 2019 तथा सृजनशीलता सम्मान 2017 सहित कुछ अन्य सम्मान।

■ सम्प्रति:-
उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन शिक्षण-कार्य और क्षणिकाकार, माइक्रोपोएट्री कॉस्मॉस तथा द फतेहपुर रिजोल्यूशन का अव्यावसायिक सम्पादन।

■ सम्पर्क:-
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.), पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005


Wednesday, 27 August 2025

अकृतज्ञ/डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' की लघुकथा

[प्रतिष्ठित समाचार पत्र दैनिक जागरण के साहित्यिक पुनर्नवा पृष्ठ पर 4 नवम्बर, 2013 को प्रकाशित]
बस में बहुत ज़्यादा भीड़ थी। बैठने के लिए तो दूर की बात, ठीक से खड़े होने तक की जगह नहीं थी। कुछ देर बाद बस अगले ठहराव पर रुकी। वहाँ से एक दम्पति चढ़े, उनके साथ एक दुधमुँहा भी था। अपनी सीट पर आराम से बैठे विमल बाबू से न रहा गया और वे उठ खड़े हुए। महिला उनकी सीट पर बैठ गयी। कुछ देर बाद विमल बाबू के घुटनों में असहनीय दर्द होने लगा...ख़ैर वे किसी तरह खड़े रहे, उन्हें तसल्ली इस बात की थी कि उनकी वज़ह से दुधमुँहे बच्चे को लिये एक औरत की यात्रा आसान हो गयी। इसी सोच-विचार के बीच एक स्थान पर बस रुकी, शायद कोई गाँव था, उस औरत के ठीक बगल में बैठा व्यक्ति उतरने के लिये उठ खड़ा हुआ। विमल बाबू जैसे ही बैठने के लिए सीट की ओर झुके, उस महिला ने आँखों के इशारे से अपने पति को बैठ जाने के लिये कहा...यद्यपि वह व्यक्ति विमल बाबू के झुकने से पहले ही उस जगह बैठने की तैयारी में था।

"अरे बेटा, मुझे बैठ जाने दो, घुटनों...", विमल बाबू बस इतना ही कह सके थे कि वह आँखें तरेर कर बोला, बाबूजी कुछ तो लिहाज़ कीजिए। बगल में बैठने के लिए आपको मेरी ही औरत मिली है?"

"नहीं-नहीं, मेरी बात तो सुनो..." वह धृष्ट पति लाल-पीला होते हुए कुछ कहने ही जा रहा था कि उसकी बीवी उसे शान्त कराते हुए बोली- "आप चुपचाप बैठ जाइए न, क्यों किसी के मुँह लगते हो। सफ़र में तरह-तरह के लोग मिलते हैं। वह आराम से बैठ गया। विमल बाबू अपनी कर्तव्य-परायणता पर कुछ ज़्यादा ही पछताने लगे।

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
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