Thursday, 21 August 2025

विडम्बना/डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' की लघुकथा

 

पारसपुर के कवि सम्मेलन की तैयारी इस बार भी धूमधाम से की गयी थी। श्रोताओं के के लिए सामने कुर्सियाँ सजी हुई थीं। विशिष्ट अतिथियों के लिए अग्रिम पंक्ति में सोफे रखवाये गये थे। मुख्य चौराहे पर प्रत्येक वर्ष होने वाले इस कार्यक्रम में पंडाल लगभग भरा रहता था। संयोग से इस वर्ष ठीक उसी दिन कार्यक्रम स्थल से बमुश्किल दो सौ मीटर की दूरी पर एक नाच का प्रोग्राम भी आयोजित किया गया था। हसीनाओं का नाच देखने के लिए दो एलसीडी भी लगायी गयी थीं। नाच शुरू होने से दो घंटे पहले ही भीड़ इकट्ठा थी। आगे खड़े होने की होड़ में जमकर धक्का-मुक्की हो रही थी। उधर कवि सम्मेलन शुरू हो गया था। आयोजक मंडल के सदस्य और उपस्थित कुछ बुजुर्ग काव्य-रसिक बीच-बीच में तालियाँ बजा रहे थे और ख़ाली कुर्सियाँ श्रोताओं का रास्ता ताक रही थीं। 

© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ. प्र.) 
पिन कोड- 212601
मोबाइल- 9839942005
ईमेल- veershailesh@gmail.com

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