"बेटा! इस घने वीरान जंगल में क्यों आये हो?"
"सच्चे साधु की तलाश में हूँ बाबा।"
"उससे मिलकर क्या करोगे?"
"पूछूँगा कि दुनिया के दुख कैसे मिटेंगे? कहीं तपस्या करके या लोगों के बीच रहकर उनकी सेवा करके?
" उनके बीच रहकर बेटा। मैं यहाँ आकर पछता रहा हूँ।"
"आप साधु हैं क्या?"
"हाँ।"
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© डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
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डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' एक कवि, साहित्यकार और सम्पादक हैं। उनकी कविताएँ एवं लघुकथाओं का तीस से अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुकी हैं। उन्होंने दो दर्जन से अधिक पुस्तकों का और कई पत्रिकाओं के विशेषाकों का संपादन किया है। वे हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखते हैं।

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